लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। शास्त्री स्वतंत्र देश के दूसरे प्रधानमंत्री हैं। लाल बहादुर शास्त्री भारत देश का सबसे साधारण और ईमानदार नेता के रूप में देखा जाता है। राजनीतिक विपक्षी विचारधारा के नेता भी लाल बहादुर शास्त्री को प्रधान मंत्री के तौर पर ईमानदार और साफ़-सुथरी छवि के नेता स्वीकार करते हैं।देश के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री ने अपने कार्यकाल में देश को कई संकटों से उबारा। लाल बहादुर शास्त्री का तकरीबन 18 महीने का प्रधानमंत्री कार्यकाल रहा। शास्त्री को सादगी, देशभक्ति और ईमानदार छवि के लिए मरणोपरान्त भारत सम्मान से नवाजा गया। स्वतंत्र सेनानी के रूप में शास्त्री जी को असहयोग आंदोलन के दौरान पहली बार जेल जाना पड़ा था जिसमें उन्हें नाबालिग होने के कारण रिहा कर दिया गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे स्वतंत्रता आंदोलन में लाल बहादुर शास्त्री को देश के लिए 9 साल जेल में गुजारने पड़ें। लाल बहादुर शास्त्री ईमानदार के साथ-साथ देश की कानून व्यस्था का शख्ती से पालन करते थें। आज़ादी के बाद प्रधानमंत्री नेहरू के पहले कार्यकाल में लाल बहादुर शास्त्री को रेल मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे शास्त्री ने 7 दिसंबर 1956 को रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हए लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दिया था। नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री को देश की कमान सौंपी गई। शास्त्री ने छोटे से कार्यकाल में देश के लिए कई अहम फैसले लिए।
1965 पाकिस्तान युद्ध
भारत देश 1962 के चीन के आघात को भूल नहीं सका था कि एक बार फिर पाकिस्तान से 1965 में दो-दो हाथ करने पड़े। 1962 चीन युद्ध में भारत देश को नेहरू के नेतृत्व में बुरी तरह शिकस्त मिली थी। चीन से युद्ध ने देश की अर्थव्यस्था को चकनाचूर कर दिया था ऐसे शास्त्री ने प्रधानमंत्री के रूप में एक मजबूत नेतृत्व देने का काम किया और पाकिस्तान को धूल चटा दिया। लाल बहादुर ने“जय जवान जय किसान” का नारा दिया था जिससे उन्होंने जूझ रहे सेनाओं को आर्थिक मदद देेने का काम किया। युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने दिए नारे को देश की सुरक्षा के लिए कर दिखाया। देश के बजट में शास्त्री ने अपनी सरकार के बजट में 25 प्रतिशत सेनाओं के लिए देने का काम किया था।
देश भक्ति में घरेलु खर्च में किया कटौती
भारत देश का एक मात्र प्रधानमंत्री जो देश हित के लिए घरेलु खर्च में कटौती किया। लाल बहादुर शास्त्री ने देश की आर्थिक सहारा बनने के लिए अपने घर की नौकरानी को हटा दिया था अपने बेटे की कमजोर ट्यूशन शिक्षक को यह कहकर निकाल दिया कि देश में कई बच्चे हैं जो फेल हो जाते है अगर मेरा बेटा भी फेल हो गया तो क्या हुआ । मैं भी एक आम आदमी हूँ मगर हमें इस वक़्त देश की कमजोर आर्थिक स्थिति को मजबूती देने में हर संभव कोशिश करनी चाहिए।
देश की अर्थव्यवस्था को संभाला
जवाहर लाल नेहरू के देहांत के बाद राजनीतिक जादूगर के.कामराज ने देश के प्रधानमंत्री का पद लाल बहादुर शास्त्री को दिलाने का काम किया। शास्त्री जी के प्रधान मंत्री बनने के वक़्त भारत देश आर्थिक उथल-पुथल से जूझ रहा था ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री की जिम्मेदारी काफी ज्यादा थी। एक ऐसे व्यक्तित्व ने देश की कमान संभाली जो भारत को न सिर्फ उबरने में बल्कि पड़ोसी देश को लताड़ लगाने का भी काम किया। पाकिस्तान की ओर से हमले का जवाब लाल बहादुर शास्त्री ने अपने सैनिकों को खुली छूट दे कर किया। आक्रमण पर सेनाओं के अपने प्रधान मंत्री से पूछे सवाल पर शास्त्री जी ने एक वाक्य में उत्तर दिया कि “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?”
चरमराई अर्थव्यवस्था में शास्त्री जी के शासन में समाज के निचले तबके के हित के साथ-साथ भारत ने अपने विपक्षियों को भी करारा जवाब दिया। भारत की सेना ने न सिर्फ करारा जवाब दिया बल्कि पाकिस्तान के इलाकों पर भी कब्ज़ा करना शुरू कर दिया।
महिलाओं को किया सशक्त
एक शांत और ईमानदार छवि के नेता ने प्रधान मंत्री की कुर्सी सँभालते हुए हर क्षेत्र और समुदाय के लिए काम किया। ट्रांसपोर्ट मंत्रालय सँभालते हुए शास्त्री ने ही इंडस्ट्री में महिलाओं को कंडक्टर के रूप में काम करने का मौका दिया। लाल बहादुर शास्त्री ने प्रदर्शनकारियों का ख्याल रखते हुए लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार की मांग रखी थी।
ताशकंद समझौता
पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना ने लाहौर पर धाबा बोल दिया। इस अप्रत्याशित आकर्मण को देख अमेरिका ने लाहौर में रह रहे अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की। रूस और अमेरिका के चहलकदमी के बाद भारत के प्रधान मंत्री को रूस के ताशकंद समझौता में बुलाया गया। शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते की हर शर्तों को मंजूर कर लिया मगर पाकिस्तान जीते इलाकों को लौटाना हरगिज स्वीकार नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय दवाब में शास्त्री जी को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा पर लाल बहादुर शास्त्री ने खुद प्रधानमंत्री कार्यकाल में इस जमीन को वापस करने से इंकार कर दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही भारत देश के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री का संदिग्ध निधन हो गया। 11 जनवरी 1966 की रात देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की मृत्यु हो गई।
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